Panchtantra moral story
कछुवा और दो हंस
Turtle and two swans
गहरे जंगल में तालाब में एक कछुवा रहता था | दो हंस उसके परम मित्र थे | वह दो हंस और कछुवा नित्य तालाब के किनारे देवो और महिर्षियों की कथा कहकर सायंकाल अपने घोसलों में चले जाते थे |
Bodh katha hindi
Turtle and two swans |
कुछ दिनों बाद बारिश न होने से तालाब धीरे धीरे सूखने लगा | कछुए के दुःख से दुखी दोनों हंसो ने कहा, "अरे मित्र इस तालाब में कीचड़ ही बचा है | तुम्हारा क्या होगा यह सोचकर हमारा ह्रदय दुःख से भरा है |" यह सुनकर कछुवे ने कहा " अरे पानी के बिना अब मेरे जीवन आस मिटति जा रही है | इसलिए कोई उपाय सोचो | वह दोनों हंस बोले " दुःख के समय भी धीरज नहीं छोड़ना चाहिए क्यों की धैर्य से कदाचित मनुष्य को चल मिलती है| आफ़ते पैदा होने पर बुद्धिमान मनुष्य सदा मित्रो और बंधुओ के लिए मेहनत करता है |
कछुवा बोला तुम कोई मजूबत रस्सी या भी छोटी काठ लाओ और भरे पानी वाले किसी तालाब की तलाश करो | मैं अपने दातो से लकड़ी का बिच का हिस्सा पकड़ लूंगा और तुम दोनों उसके दोनों छोर पकड़कर मुझे उस तालाब में ले चलोगे |" उन दोनों हंसो ने कहा, "हम यही करेंगे पर कृपा करके तुम चुप रहना, नहीं तो तुम काठ से नीचे गिर जाओगे |"
इस तरह का इंतजाम होने के बाद, वे हंस उस कछुवे को ले जाने लगे | उस कछुवे को जाते जाते एक गांव दिखा | गांव के नागरिक विस्मय से ऊपर आकाश में देखने लगे | और आपस में कहने लगे अरे ये हंस कोई चक्राकार, गोल वास्तु लिए जा रहे है, देखो देखो |
इस प्रकार उनका कोलाहल सुनकर कछुवे ने कहा, "ये कैसा शोरगुल है |" पर इस तरह बोलते हुए वह पूरी बात भी न कह सका और नीचे आ गिरा | नीचे गिरतेहि चोट लगने से वह अधमरा हो गया | बाकि नगरवासियो ने उसके टुकड़े टुकड़े कर डाले |
इसका तात्पर्य यह है की, जो अपने हितैषी मित्रो की जो बात नहीं मानता वह लकड़ी के ऊपर से गिरे हुए कछुए की तरह नाश हो जाता है | और एक छुपा हुआ तात्पर्य यह भी है की, कभी कभी मौन ही जिंदगी बचाता है और बदल भी देता है |
कुछ लोग ऐसे होते है की, जीने कब, कहाँ, क्या बोलना है ये पता ही नहीं होता है | ऐसे लोग भले कितने ही इमानदर हो, मेहनती हो, या फिर उनमे सौ गुण हो, मगर ऐसे लोगो से दोस्ती करना उनके लिए और अपने लिए भी घातक होती है | जाने कब कहाँ क्या बोल जाये |
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