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होशियार केकड़ा | Smart Crab hindi kahani

Hindi kahani with Moral


बगला और केकड़ा

Smart crab

     एक घने जंगल में एक बड़ा तालाब तरह तरह के जलचरो से भरा था | वहाँ तालाब के किनारे रहने वाला एक बूढ़ा बगला तालाब से मछीलियो को पकड़ने में असमर्थ हो गया था | इससे भूख के मारे और अपने होने की असमर्थता पर रो रो के जमीन भिगोने लगा | तभी एक केकड़ा तालाब के बाकि जलचरो के साथ उसके पास आकर और उसके दुःख से दुखी होकर कहने लगा, " चाचा ! आज तुम क्यों रो रहे हो | आज तुम भोजन किये बिना यहाँ क्यों बैठे हो |" 

     बगला बोला, " तुमने बराबर कहा | कल रात मेरे सपने में यमराज आये | उन्होंने कहा तुमने अपने जीवन में कितनी मछलियों की हत्या की है | तुम नरक में जाओगे | सुधर जाओ, अब भी वक्त नहीं गया है | अब मैंने इस संसार से वैराग्य लिया है | इसलिए में अनशन कर रहा हूँ | इसलिए पास आई मछलियाँ भी नहीं खाता और भी एक कारन है , मैं इसी तालाब में बड़ा हुआ हूँ | मैंने कई  ज्योतिषो के मुख से सुना है | शकट शनि रोहिणी नक्षत्र को भेदकर जायेगा | और उसकी शुक्र और मंगल से युति होगी | तब इंद्रदेव १२ साल पृथ्वी पर पानी नहीं बरसाते | इस तालाब में थोड़ा ही पानी है | इसलिए यह जल्दी ही सुख जायेगा | यह तालाब सुख जानेपर मैं जिन जलचरो के साथ बड़ा हुआ, उन सबको मरते हुए नहीं देख सकता | इसलिए मैं दुःख से आमरण अनशन कर रहा हूँ | जलहथी, मगर, कछुवे प्राणी खुद ही चले जा रहे है | मगर इस तालाब के बाकि जलचर पूरी तरह निश्चित बैठे है | और भविष्य में इनमे से किसीका भी नामोनिशान नहीं रहेगा |"
Hindi kahani with moral
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Smart Crab


     उसकी बातें केकड़े ने दुसरो जलचरो को बताई | सभी जलचर बगले के पास आकर कहने लगे, " चाचा क्या कोई उपाय है जिससे हमारी रक्षा हो सकती है |"  बगले ने कहा, " इस तालाब से थोड़ी दूर गहरे पानी का तालाब है , वह चौबीस साल पानी न बरसने पर भी सुख नहीं सकता | जो कोई मेरे पीठ पर चढ़ जाए उसे में वहाँ ले जाऊंगा |" उन सबका बगले पर विश्वास हो गया | " मामा , चाचा , भाई ! पहले मैं, पहले मैं ऐसा सभी चिल्लाते हुए चारो और से मछीलियाँ और जलचरो ने घेर लिया | वह बगला भी सभी मछीलियो को बारी बारी पीठपर चढ़ाकर तालाब से दूर एक पत्थर पर पटक कर खाने लगा | फिरसे तालाब के किनारे आकर उन्हें झूठी बातें सुनाकर नित्य अपना आहार बनाकर अपना पेट भरने लगा |

     एक दिन केकड़े ने कहा, "चाचा इस बारे में मेरि हि आपसे पहले बात हुई थी | फिर आप मुझे छोड़कर दुसरोको ही ले जा रहे है ? अब तुम मेरी भी जान बचाओ |" 

     यह सुनकर बगले ने सोचा मछली खाकर में ऊब गया हूँ | आज केकड़े को खा लेता हूँ | यह सोचकर उसने केकड़े को अपने पीठपर चढ़ाकर उस पत्थर की तरफ निकला | उस केकड़े ने रास्ते में एक चट्टान दिखाई दी | वहाँ पर मछलियों के हड्डियों का पहाड़ देखा | ये देखकर केकड़े ने बोला, " वह तालाब कितनी दूर है | मेरे बोझ से तुम थक गए हो | 

     बगला सोचने लगा, यह तो जलचर है , इसका जमीन पर प्रभाव नहीं चल सकता और हसकर बोला, " अरे केकड़े, दुरसा तालाब नहीं है | यह तो मेरा खाना है | अब तुम अपने इष्ट देवता का स्मरण कर | तुझे भी में इस चट्टानपर पटक कर खा जाऊंगा | 

     बगला यह कह रहा था की, इतने में केकड़े ने अपने दोनों आरो से कमल ककड़े की तरह उसकी मुलायम गर्दन पकड़ ली और उसे मार डाला |बाद में वह केकड़ा बगले की गर्दन लेकर धीरे धीरे उस तालाब पर आ पहुँचा | सब जलचरों ने उससे पूछा, " अरे केकड़े ! तू कैसे लौट आया ? चाचा क्यों नहीं लौटे ? तू जवाब देने में देर क्यों करता है ? हम तेरी राह देख रहे है | केकड़ा फिर हसकर बोला, "अरे मूर्खो वह झूठा सब जलचरो को धोखा देकर, यहाँ से थोड़ी दूर चट्टान पर पटककर खा गया | मेरी जिंदगी बाकि थी | इसलिए मैं उस दगाबाज़ का मतलब जानकर उसकी गर्दन लाया हूँ | अब तुम्हे घबराने की जरुरत नहीं है | अब यहाँ के सब जलचर सुरक्षित रहेंगे |

      इस कथा से हमें यह सीख मिलती है की,
शत्रु की मीठी बातों पे कभी भरोसा नहीं करना चाहिए | 
संकट में भी जो शांत रहकर अपनी बुध्दि का इस्तेमाल करता वह हर संकट पार कर लेता है 

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