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कृष्ण का वंश क्यों नष्ट हुआ ? क्या है इसके पीछेकी कहानी ? why the descent of Shri Krishna was destroyed

जानिए आखिर क्यों श्री कृष्ण के वंश का नाश हुआ | 

why the descent of Shri Krishna was destroyed


    श्रीकृष्ण के वंश में १,,३ नहीं बल्कि १८ कुल के यादवोंका समावेश था | फिर ऐसा क्या हुआ की इतने बड़े कुल का नाश हुआ? उनका एक भी उत्तराधिकारी नहीं बचा| श्रीकृष्ण इस अनहोनी को क्यों नहीं टाल सके




दोस्तों जानते है इसके पीछेकी रोचक कहानी | इन सबके पीछे ऐसी दो घटनाये है जिनमे दो शाप जिम्मेदार है | एक था देवी गांधारी का और दूसरा था महर्षि दुर्वास ऋषि का

देवी गांधरी को श्रीकृष्ण अपने माता के समान मानते थे | और महर्षि दुर्वास ऋषि को कृष्ण अपनेसे भी बहुत ज्ञानी मानते थे | फिर गांधारी और दुर्वास ऋषि ने ऐसा शाप क्यों दिया ?

The Biggest curse in hindu mythology mahabharat

गांधारी का कृष्ण को शाप | Gandhari curses Krishna
     दोस्तों पहले जानते है देवी गांधारी के शाप के बारे में | जब महाभारत में १७ दिन के युद्ध के पश्च्यात गांधारी अपने ९९ पुत्रों को युद्ध में गवा चुकी थी | तब अपने पुत्र के शोक में डूबी हुई थी | तब श्रीकृष्ण देवी गांधारी के आशीर्वाद और उनके दर्शन हेतु उनके शिबिर में गए | उस वक्त गांधारी ने श्रीकृष्ण से पूछा " इस युद्ध के उत्तरदायी तुम हो | यदि तुम चाहते तो युद्ध नहीं होता | यदि तुम चाहते तो इस युद्ध को रोक सकते थे | तुम तो योगेश्वर हो तुम्हारे लिए कुछ भी असंभव नहीं |"  तब  श्रीकृष्ण ने कहा " मैं अवश्य रोक सकता था | मगर यह युद्ध आवश्यक था, धर्म और सत्य की स्थापना के लिए |" तभी अपने ९९ पुत्रो के शोक में डूबी हुई गांधारी ने श्रीकृष्ण को शाप दिया  "मेरी परिवार की तरह यदुवंशका भी विनाश हो जायेगा"

दुर्वास ऋषि का कृष्णपुत्र साम्ब को शाप | Curse of Durvas sage to Krishna's son Samb 

     और दूसरा शाप महर्षि दुर्वास ऋषि का था | जो गांधारी के शाप को पूरक था | ये तबकी बात है , जब महाभारत युद्ध समाप्त हो चूका था | महर्षि दुर्वास द्वारका में श्रीकृष्ण से मिलने आये थे | अतिथिग्रहण के पश्च्यात दुर्वास ऋषि अपने शिष्यगणों के साथ प्रभासक्षेत्र जाने निकले | खाड़ी पर करके प्रभासक्षेत्र तक दुर्वास और उनके शिष्यगणों को छोड़ने हेतु कृष्ण पुत्र साम्ब जो कृष्णपत्नी जाम्भवती का जेष्ठ पुत्र था, वह गया था | उसने महर्षि दुर्वास की चेष्ठा करने हेतु लकड़ी के ३ मुसलोको अपने पेट बांधकर और गरोदर स्त्री का वेश करके दुर्वास ऋषि के सामने गया और इस नाटक में उसके चचेरे बंधू भी शामिल थे | कृष्णपुत्र साम्भ गरोदर स्त्री के भाती  एक एक पैर धीरे धीरे डालते दुर्वास ऋषि के पास पहुंचा | और ऋषि से पूछा मुझे पुत्र होगा या कन्या यह बताकर सुलभ प्रसूतिका आशीर्वाद दे

     साम्भ ने महिला के आवाज में पूछा आप इतने अंतर्ज्ञानि, आप ही बताइये मुछे पुत्र होगा का कन्याऔर महिला के भाती लटके झटके करके संकोचवश शरमानेका नाटक किया | उसके बंधुओ ने भी पुत्र या कन्या इस बात पर ऋषि को घेराव डाल दिया | तभी साड़ी में छुपाये हुए पेट पर बंधे ३ मुसल नीचे गिर गए | तभी साम्भ कुचेष्टापूर्वक हसते हुए अपने बंधुओ में छुप गया | तभी उसके सभी बंधू जोर से हसने लगे | सामने पड़े हुए लकड़े के मुसल देखतेही महर्षि दुर्वास क्रोध से लाल हो गए | और बोले  "मेरे जैसे ऋषिका घनघोर अपमान करनेवाले निर्बुद्ध यादवो, इसी लकड़ी के मुसलोसे तुम यदुवंश का नाश होगा | डरके मारे साम्भ और उसके बंधुओ ने उस लकड़ी के मुसलो को पाषणोंसे चूर्ण करके वही समुन्दर में बहा दिया | कुछ समय बाद वही चूर्ण से समुन्दर किनारे लोहे के घास उत्पन हुए | जो तीरो के भाती तीक्ष्ण थे |

जरूर पढ़े : बलराम कृष्ण से रुष्ट होकर उन्हें छोड़कर क्यों और कहा चले गए ? और कृष्ण ने बलराम को कैसे मनाया था ?

यदुवंश का नाश | yadava dynasty destroyed

     उसके कुछ समय बाद जब यादवों ने उसी प्रभासक्षेत्र में मैयरक और सोमरस का सामूहिक प्राशन किया | मध्यरात्रि तक यादव मद्यप्राशन करते रहे | पहले कृतवर्मा और सेनापति सात्यकी में झगड़ा हुआ | सात्यकी ने लोहे के तृण (घास) से कृतवर्मा को मार डाला | इसके उपरांत यादवों में घमासान युद्ध हुआ | यादवों ने वहाँ  के लोहे के तृणों से यानि घास से जो के लकड़ी के मुसलो के चूर्ण से उत्पन्न हुए थे | उसीसे आपस में युद्ध करके मर गए | सुबह तक सभी १८ कुल के यादव मारे जा चुके थे | युवराज बलराम ने उन्हें रोकनेकी बहोत कोशिश की | मगर वह असफल रहे | अपने १८ कुल के यादवों का शव देखकर दुखी होकर युवराज बलराम ने भी जलसमाधि ली | इसके उपरांत कृष्ण और उनके बंधू उद्धव ही बचे थे | कृष्ण को कुछ वर्षो बाद भिल्ल के हातो मौत आ गयी | और उनके बंधू उद्धव तो सन्यासी थे | इस तरह कृष्ण के यदुवंशका नाश हुआ और वह वंश आगे नहीं बढ़ पाया  

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