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भीम और दुर्योधन का आखिरी युद्ध, गांधारी की अजब दिव्यशक्ति और कृष्ण का चातुर्य | Bhim Duryodhan gada yudh

भीम और दुर्योधन का आखिरी युद्ध |
Bhim Duryodhan gada yudh

       दोस्तों में आपको महाभारत की रोचक घटना के बारे में बताऊंगा | यह घटना भीम और दुर्योधन के आखरी युद्ध से जुडी हुई है 


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गांधारी की अजब दिव्यशक्ति | Gandhari's amazing divine power

जब महाभारत के युद्ध में माता गांधारी ने अपने ९९ पुत्रों को गवा दिया जिस वक्त दुर्योधन एक मात्र पुत्र ही जीवित था इस युद्ध में कम से कम अपना एक पुत्र तो जीवित रहे इसलिए देवी गांधारीने अपनी दिव्य शक्ति का उपयोग करने के ठान ली उस दिव्य शक्ति के उपयोग से दुर्योधन इतने शक्तिशाली और बलवान बन जातेके भीम उसे गदायुद्ध में हरा ही नहीं पाते बल्कि उससे खुद हारकर मारे भी जाते दोस्तों क्या थी वो दिव्यशक्ती और सिर्फ दुर्योधन के लिए ही क्यों 

देवी गांधारी शुरू से ही इस युद्ध के खिलाप थी वो कौरवो की तरह पांडवो को भी अपने पुत्र के समान मानती थी इसलिए इस दिव्यशक्ती का उपयोग अपने १०० पुत्रो के लिए करके पांडवोके साथ अन्याय नहीं करना चाहती थी मगर अपने ९९ पुत्रों को गवानेके बाद अपने अंदर की ममता को रोक नहीं पायी और कमसे कम एक पुत्र जीवित रहे इसलिए इस दिव्य शक्ति का उपयोग किया 

आइये दोस्तों जानते है उस दिव्यशक्ती और दुर्योधन भीम युद्ध और कृष्णचातुर्य के बारे में |

जब  महाभारत के अंतिम चरन में भीम और दुर्योधन का निर्णायक़  घमासान युद्ध चल रहा था भीम और दुर्योधन में कोई भी हार मानने  को तैयार नहीं था नाही कोई हार रहा था यह घमासान युद्ध बहुत देर तक चल रहा था आखिर में दोनों भी थक गए तब दुर्योधन ने भीम पर प्रहार करना कम किया भीम ने इसका फायदा उठाके दुर्योधन के पीठपरछातीपरपेटपरसिरपर प्रहार करना शुरू किया मगर दुर्योधन सब प्रहार हस हस के झेल रहा था मानो उसपर उसका कोई असर ही नहीं हो रहा था १०० हातियों का बल रखनेवाला भीम के गदाप्रहार का दुर्योधन पर क्यों असर नहीं हो रहा था क्या इसके पीछे देवी गांधारी के दिव्यशक्ती का हात था 

आइये दोस्तों जानते है दुर्योधन को ये शक्ती कैसे प्राप्त हुई गांधारी ने दुर्योधन को जब अपने पास बुला लिया तब गांधारी ने दुर्योधन को कहातुझे  में वज्र के समान कवच प्रदान करुँगी तू नदी में स्नान करके जन्म के समय तू  जिस विवस्त्र अवस्था में थाउसी अवस्था मेरे सामने आ जाओ तुम दुर्योधन ने माता के समक्ष नग्न आने में संकोच जताया परंतु देवी गांधारी दुर्योधन को बोली " माता के समक्ष संकोच कैसा और यह मेरी आज्ञा है |" 

कृष्ण लीला | krishn leela

दुर्योधन माता के आदेशानुसार स्नान करके गांधारी के शिबिर की तरफ जा ही रहे थे तभी कृष्ण ने उसे देखा और दुर्योधन के सामने आकर कहा " माँ के सामने इस अवस्था में जाना तुम्हे शोभा नहीं देता तुम भले ही माँ के सामने बचपन में नग्न अवस्था में उनकी गोदी में खेले होंगे मगर अब तुम बच्चे नहीं रहे अब एक वयस्क युवक हो और पूर्णतः पुरुष रूप में हो और इस अवस्था में उनके सामने जाना हस्तिनापुर के युवराज को शोभा नहीं देता वो तो एक माँ है उनके लिए पुत्र हमेशा छोटा ही होता है मगर तुम तो वयस्क पुरुष होऔर पुत्र हो तुम्हे तो लज्जा आनी चाहिए | "

यह सुनकर दुर्योधन सोच में पड़ गया तब कृष्ण ने सुझाव दिया तुम केले के पत्ते का उपयोग करो केले के पत्ते तो कोई वस्त्र नहीं होते इस तरह माता के आज्ञा का पालन भी होगा दुर्योधन ने केले के पत्ते से अपनी कमर से जांघो तक का हिस्सा ढककर माता गांधारी के सामने खड़े हो गए माता गांधारी एक शिवभक्त और पतिव्रता नारीजिसने अपनी पति का साथ देते हुएविवाह से लेकर अपनी ऑंखो पर आजन्म पट्टी बांधके अंध रहने का प्रण लिया था उसकी इस तपस्या से उसकी बंध आँखों में इतनी शक्ति थीजिसे वो आँखे खोलकर एक बार देख लेती वह व्यक्ति वज्र के समान हो जाता जब देवी गांधारी ने पट्टी खोलके दुर्योधन को देखा तो उसकी दृष्टी दुर्योधन के शरीर पे जिस हिस्से पर पड़ी वह वज्र के समान कठोर हो गया मगर कमर से जांघो तक का हिस्सा केले के पतों से ढका था इसलिए वह शरीर का हिस्सा दुर्बल ही रह गया 


Bhim Duryodhan gada yudh

गदायुद्ध में नियमानुसार कमर के निचे प्रहार वर्जित है इसलिए दुर्योधन को भीम के गदाप्रहार का कोई असर ही नहीं हो रहा था कृष्ण जानते थे यह युद्ध गदायुद्ध के नियमानुसार चलता रहा तोभीम की हार निश्चित थी इसलिए युद्ध के समय कृष्ण ने भीम को जांघो की तरफ इशारा कर के  भीम को अपनी प्रतिज्ञा याद दिलायी जो उन्होंने द्रौपदी वस्त्रहरण के बाद ली थी की  दुर्योधन की जाँघे फोड़ दूँगा जिसपर दुर्योधन द्रौपदी को बिठाने की बात कह रहा था इसके बाद इशारा पाते ही भीम ने दुर्योधन की दोनों जांघो गदाप्रहार से फोड़ दी और युद्ध में जीत गए |  जांघो से खून का स्त्राव बहता रहा और सूर्यास्त के पश्च्यात बहुत देर के बाद उसके प्राण चले गए 

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