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krishna aur balram ,बलराम कृष्ण से रुष्ट होकर उन्हें छोड़कर क्यों और कहा चले गए ?


Krishna aur Balram

  Balarama angry with krishna and leave him

बलराम   कृष्ण से रुष्ट होकर उन्हें छोड़कर क्यों और कहा चले गए ? और कृष्ण ने बलराम को कैसे मनाया था ?

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        दोस्तों इसके पीछे एक रोचक कहानी है | कृष्ण की तीसरी पत्नी सत्यभामा के पिता सत्राजित के पास एक सम्यंतक मणि था | सम्यंतक मणि यह वो मणि था, जो पारस पत्थर की तरह लोहे को सोने में बदल देता था | उस मणि का वास्तव जहाँ रहता था, वहाँ खुशियाली और स्वास्थ हमेशा वास करते थे | विधिनुसार पूजा करके लोहे के टुकड़ेको सम्यंतक मणिके स्पर्श में रखा जाता था | और बादमे मंत्रघोष के उच्चारण करते ही वह लोहेका टुकड़ा सोने में परिवर्तित हो जाता था |  

     एक दिन शतधन्वा नाम के राजाने सत्राजित से उसकी पुत्री का हात माँगा था | मगर सत्राजित ने उसे जवाब न देते हुए थोड़े वक्त के लिए टाल दिया | बादमे सत्राजित ने अपनी कन्या का विवाह श्रीकृष्ण से करते ही वह बदले की आग में झुलसने लगा | इसी बदले की आग में उसने सत्राजित को मारकर उसका सम्यंतक मणि चुरा लिया | 

     यह बात श्रीकृष्ण को मालूम होते ही, उन्होंने अपने गुप्तचर विभाग को काम पे लगा दिया | अपने गुप्तचरोँसे श्रीकृष्ण को पता चला की शतधन्वा काशी राज्य में छुपा हुआ है | श्रीकृष्ण ने अपनी सेनासहित काशी राज्य की और बढे | काशीराज्य के सीमापार कृष्ण और बलराम ने शतधन्वा से युद्ध करके उसका वध कर दिया | 

बलराम की नाराजगी कृष्ण पर |  Balarama's anger over krishna  

     युद्ध सम्पातीपर बलराम को सम्यंतक मणि देखने का कुतूहल जाग उठा | वो श्रीकृष्ण से बोले "अरे अनुज, मुझे एक बार वह सम्यंतक मणि दिखा दो | अभी तो हमने शतधन्वा को भी मार डाला" | मगर कृष्ण उनसे बोले "भलेही हमने शतधन्वा को मार गिराया | मगर मेरे पास वह मणि नहीं है | वह मणि हमारे ही मंत्रीमंडल के जेष्ठ मंत्री अक्रूरचाचा के पास है | पहिले हमें उन्हें ढूँढना होगा | तभी हम उसे देख पाएंगे" | फिर भी बलराम कृष्ण से बारबार कहने लगे, मुझे उस मणि की कोई अभिलाषा नहीं है | मगर मुझे एक बार दिखा दो" | इस बात पर देरतक कृष्ण और बलराम में बहस हुई | फिर आखिर में बलराम बोले "जेष्ठ बंधू से अनमोल तुम्हे वह मणि है | तो मैं तुम्हे छोड़कर कही दूर चला जाता हूँ | तुम्हे तुम्हारा सम्यंतक मणि मुबारक हो"| यह कहकर बलराम मिथिला नगरी जाकर वास्तव करने लगे | 
दोस्तों आपको जानकर अचरज होगा की, अक्रूरचाचा वो इंसान है, जिन्होंने कृष्ण को गोकुल से मथुरा लाये थे, कंसवध के लिए | 

Krishna aur Balram relationship : आइये जानते है, कृष्ण ने बलरामजी को कैसे मनाया | 

     श्रीकृष्णने अपना दूत मिथिला नगरीमे बलरामजी के पास भेजा | और सन्देश में भेजा की, मैं तुम्हारे पास एक पेटिका भेज रहा हूँ | उसमे मेरा मयूरपंख है | तुम जबतक द्वारका लौटकर अपना युवराज पद ग्रहण नहीं करते, तबतक में अपने सिरपर मुकुट में यह मयूरपंख नहीं धारण करूँगा | और तुम खुद आकर यह मयूरपंख मेरे मुकुट में लगाना | और दूसरी और अपने अनुज बंधू उद्धव को दूत के रूप में अक्रूरचाचा के पास भेजा | और उन्हें अभय देते हुए, वह सम्यंतक मणि द्वारका के भरी सभा में एकबार बलराम सहित सभी द्वारकाजनो को दीखाने का संदेशा भेजा | प्राणो का अभय मिलते ही अक्रूरचाचा ने भरी सभा में बलराम के सामने वह मणि सभी को दिखाया | 

     इस तरह कृष्णने अपने जेष्ठ बंधू बलराम का गुस्सा शांत किया | और दोस्तों इस रोचक कहानी में एक बात और घटी | श्रीकृष्ण ने अक्रूरचाचा को उनका मंत्रिपद लौटाकर उस सम्यंतक मणि के सुरक्षा का दायित्व उन्हें ही सौपा |
नाराज बलराम कैसे मनाया कृष्ण ने 

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