Krishna Love story and Rukmini haran : दोस्तों आइये जानते है
श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के प्रेम कहानी के बारे में | कैसे रुक्मिणी श्रीकृष्ण की पहिली पत्नी बनी ? उनकी प्रेम की शुरवात कैसे
हुई ?ये तब की
बात है जब श्रीकृष्ण ने अपनी मथुरा नगरी को भारत के पश्चिम तट पर द्वारका में बसा
लिया था |
Krishna Love story and Rukmini haran |
एक दिन द्वारका में कृष्ण से मिलने एक ब्राह्मण आया | बहोत दिनोसे बहोत दूर से लम्बा रास्ता तय करने से उसके कपडे मैले और जगह जगह फटे हुए थे | उस ब्रामण ने श्रीकृष्ण से मिलते ही उन्हें अपने पासकी रेशमी वस्त्र की थैली सौंप दी | और वह सुशिल नाम का ब्राह्मण बोला "महाराज आप ही हमारी आंध्रभृत राजकन्या रुक्मिणी के प्राणरक्षण कर सकते है | राजकन्या के भाई रुक्मी और पिता भीष्मक ने उनकी मर्जी के खिलाफ उनका स्वयंवर तय किया है और स्वयंवर में शिशुपाल को ही अपने पति के रूप में चुनाव करने के लिए राजकन्या रुक्मिणी पर दवाब डाला जा रहा है | आप सेनासहित विदर्भ राज्यके कौण्डिन्यपुर आइये"| दोस्तों ये शिशुपाल वही है जिसके १०० अपराध माफ़ करने के बाद श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका सर धड़ से अलग किया था |
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Rukimin's love letter to lord Krishna रुक्मिणी का कृष्ण को प्रेम पत्र |
सुशिल ब्राह्मण ने दिए रेशमी वस्त्र में रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को एक
प्रेमपत्र लिखा था | उस
प्रेमपत्र के अनुसार रुक्मिणी ने लिखा था की, " मैंने कभी तुम्हे देखा नहीं मगर तुम्हारी कीर्ति
सुनकर तुम्हे मैंने मनोमन अपना पति मान लिया है | अगर मेरा शिशुपालसे विवाह हुआ तो में अपने प्राण
त्याग दूंगी | अगर आपको मेरा प्रस्ताव मंजूर है,
तो विवाह के एक दिन पहले राज्यके सीमा पर आकर मेरा हरण कर लेना | हमारी कुलप्रथा के
अनुसार वधुको सीमापार जाकर अम्बिका माता के दर्शन करने होते है | तुम वहाँपर रथ लेके आ जाओ | अम्बिका माता के दर्शन
पश्च्यात में तुम्हारे रथ में खुद ही आ जाउंगी और तुम मेरा हरण कर लेना"|
Rukmini haran : Rukmini run away with Krishna श्रीकृष्ण ने किया रुक्मिणी का हरण |
पत्र पढतेहि श्रीकृष्ण सेनासहित कौण्डिन्यपुर की सीमा पर जा पहुंचे | मगर राजा
भीष्मक को उपहार भेजके रुक्मिणी के स्वयंवर के लिए आया हूँ, ऐसे बताया | विवाह के एक दिन पहले
श्रीकृष्ण ने प्रेमपत्र अनुरूप उसका हरण कर लिया | मगर रुक्मिणी का भाई रुक्मी ने श्रीकृष्ण का पीछा किया | जब रुक्मी सेनासहित
श्रीकृष्ण के सामने खड़ा हुआ | तब रुक्मी ने गदायुद्ध का श्रीकृष्ण को आमंत्रण दिया और बोलै
"आज अगर तुमने युद्ध में मेरे प्राण लिए, तो ही तुम मेरे भगिनी रुक्मिणी को ले जा सकते हो" |
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Battle of Krishna bhagwan and Rukmi श्रीकृष्ण और रुक्मी की लड़ाई |
रुक्मी एक पराक्रमी योद्धा था | उसने बहोत देर तक कृष्ण से गदायुद्ध किया | दोनो ही गदाप्रहार से अपने
ही रक्त में भीग गए | बादमे
रुक्मी ने गदा फेककर तलवार उठा ली | यह तलवार लड़ाई बहोत देर तक चल रही थी | कृष्ण और रुक्मी की सेना दोनों तरफ से युद्ध देख
रही थी | आखिर में
कृष्ण ने अपनी तलवार से रुक्मी के तलवार के दो टुकड़े कर दिए | श्रीकृष्ण ने अपनी तलवार से
उसका सर धड़से अलग करने के लिए अपनी तलवार ऊपर उठाई | मगर वह तलवार नीचे नहीं ला सके | तो कृष्ण ने ऊपर देखा तो
रुक्मिणी ने अपने नग्न हातो से वह तलवार पकड़ रखी थी | और उनकी हातोंसे खून बह रहा
था | यह देखकर
कृष्ण ने उसे प्राणदान दिया | रुक्मी
सर नीचे झुकाते हुए अपनी सेनासहित लौट गया | उसके पश्च्यात श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी के साथ द्वारका में विवाह
संपन्न किया |
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