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ऊंट, शेर और कौआ | chalak lomadi

चालाक लोमड़ी | Panchtantra story

ऊंट, शेर और कौआ

The Lion, Camel, Crow and Jackal


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     किसी वन में एक शेर रहता था | उसके चीता, कौआ, सियार और दूसरे जानवर अनुयायी थे | उन्होंने एक बार इधर उधर भटकते हुए कारवां से अलग पड गए एक ऊंट को देखा | इस पर शेर ने कहा, " अरे ! यह कोई अजीब जानवर है | इस बात का पता लगाओ की यह जीव गांव का है या शहर का है |" शेर ने ऊंट को कभी देखा नहीं था, न ही उसका शिकार पहले किया था | यह सुनकर कौआ बोला, " स्वामी! यह तो गांव में रहने वाला ऊंट नाम का जानवर है और यह आपका भोजन है, इसलिए इसे मारिए |" शेर ने कहा, "घर आने वाले को मैं नहीं मारूंगा | शास्त्रों में कहा है की, विश्वास करके तथा बिना किसी भय के घर आये हुए शत्रु को भी जो मारता है, उसे भयंकर पाप लगता है | और नरक में जगह मिलती है | इसलिए तुम उसे अभयदान देकर मेरे पास लाओ | जिससे मैं उसके आने का कारन पुछु |" 

     इस पर वे सब ऊंट को भरोसा और अभयदान देकर शेर के पास लाये और वह प्रणाम करके बैठ गया | बाद में शेर के पूछने पर कारवां से अपने अलग होने से लेकर उसने अपना सब हाल कहा | इस पर शेर ने कहा, "अरे ऊंट ! अब तू गांव में जाकर बोझ ढोने की तकलिप न उठा | इस जंगल की पन्ने की तरह हरी घास को चराते हुए तू हमेशा मेरे पास रह |" ऊंट भी 'ठीक है' कहकर उन जानवरो में बिना किसी भय से ख़ुशी ख़ुशी रहने लगा | 

     एक दिन शेर की बड़े हाथी के साथ लड़ाई हुई | और उस हाथी के दांतो से उसे बहोत ही चोट पहुंची |घायल होते हुए भी वह मरा नहीं, पर शरीर की कमजोरी के कारन वह एक कदम भी नहीं चल सकता था | कौआ वैगेरे उसके अनुयायी भी भूख से पीड़ित होकर अपने मालिक की कमजोरी से बड़ी तकलिप पाने लगे | इस पर शेर ने कहा, "अरे कही से कोई ऐसा जीव खोज लाओ जिसे मैं ऐसी हालत में होते हुए भी मार कर तुम्हारे खाने का प्रबंध करू |

     इस पर वे चारो और घूमने लगे, पर ऐसा कोई जानवर न दिख पड़ा | इस पर कौआ और सियार आपस में सलाह करने लगे | सियार बोला, "अरे कौए ! इस भाग दौड़ से क्या मतलब ? यह ऊंट मालिक का विश्वासी होकर रह रहा है | उसे मारकर अपनी गुजर बसर करनी चाहिए |" कौआ बोला, "तूने ठीक कहा, पर मालिक ने उसे अभयदान दिया है, इसलिए वह मारने लायक नहीं है |" सियार बोला, " अरे कौए ! मैं मालिक को ऐसा पाठ पढ़ाऊंगा जिससे वह उसे मार डालेगा | 

     तू तब तक यही ठहर, जब तक की मैं मालिक की आज्ञा लेकर लौट न आउ |" यह कहकर वह जल्दी से शेर के पास जा पहुंचा और उसके पास जाकर कहा, "मालिक ! हम सारा वन घूम आये परकोई जानवर न मिला, अब हम क्या करे ? अब तो हम एक कदम भी आगे चलने में असमर्थ है | आप भी पथ्य पर है , इसलिए अदि आपकी आज्ञा हो तो ऊंट के मांस से ही आज पथ्य तोडा जाये | उसकी ऐसी कठोर बात को सुनकर शेर ने गुस्से से कहा, " अरे पापी तेरा धिक्कार हो | अगर तूने फिर ऐसा कहा तो उसी वक्त तुझे मैं मार डालूंगा | क्यों की मैंने उसे अभयदान दिया है | मैं उसे कैसे मार सकता हूँ | शास्त्रों में कहा है, विद्वान् पुरुष इस लोक में सब दानो में अभयदान को मुख्य दान कहते है | गाय का दान, भूमि का दान और भोजन का दान इन्हे मुख्यदान नहीं मानते |

     यह सुनकर सियार बोला, " स्वामी ! अभयदान देकर मारनेसे यह दोष लगता है | पर यदि महाराज की सेवा में वह अपनी जान स्वयं दे दे, तो फिर दोष नहीं लगेगा | इसलिए यदि वह स्वयं मरने के लिए तैयार हो तो ही आप उसे मारिएगा |
नहीं तो हममे से किसी एक को मारिएगा | क्यों की आप पथ्य पर है, इसलिए अगर भूख के जोर को रोकेंगे तो आप मर जायेंगे | हमारी छोटी जान से क्या है, जो स्वामी के लिए न दी जा सके | अगर स्वामी का कुछ बुरा हो गया तो हम सब क्या काम के है ?

     शास्त्रों में कहा है "किसी कुल मे जो खास आदमी होता है, उसकी सब तरह से रक्षा करनी चाहिए | 

यह सब सुनकर शेर बोला, वही करो जो तुम्हारी इच्छा है |

     सियार जल्दी ही बाकिओ के पास गया और कहने लगा, " अरे! स्वामी का स्वास्थ बहुत ही बिकट है | इसलिए और चक्कर लगाने से क्या मतलब | उनके बिना हमें कौन बचाएगा ? इसलिए हमें वहाँ जाकर भूख से परलोक जाते हुए उन्हें अपना देह अर्पण कर देना चाहिए | जिससे उनकी कृपा के उपकार से मुक्त हो जायेंगे | शास्त्रों में कहा ही है, की अगर सेवक के रहते हुए भी स्वामी पर मुसीबत पड़े तो वह सेवक नरक में जाता है | 

     इसके बाद वे सब आँखों में आंसू भरकर शेर को प्रणाम करके बैठ गए | उन्हें देखकर शेर ने कहा, "अरे, क्या तुम्हे कोई जानवर मिला या दिखाई दिया ? उस पर उनके बीच से कौआ बोला, "स्वामी ! सब जगह घूमे, पर न तो कोई जानवर दिखाई दिया, न मिला | इसलिए हे स्वामी ! आप मुझे खाकर अपनी जान बचाइए | इससे आप की तृप्ति होगी और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति होगी |

     यह सुनकर सियार बोला, " अरे ! तुम्हारा तो छोटा सा शरीर है | तुम्हे खाकर भी स्वामी जिन्दा नहीं रह सकते |  पर तूने जो अपनी स्वामी भक्ति दिखाई है, उससे तूने स्वामी की कृपा का उपकार चूका दिया है | और तीनो लोको में तेरी प्रशंसा होगी | अब तू आगे से हट, मैं स्वामी से कुछ निवेदन करू | सियार हात जोड़कर खड़ा रहा और बोला, " स्वामी ! मुझे खाकर आप अपनी जान बचाइए | इससे मुझे स्वर्ग की प्राप्ति होगी |

     यह सुनकर चित्ता बोला, " अरे ! तूने ठीक कहा | फिर भी तू छोटे शरीर वाला है | और कुत्ते की जात का है | पंजो वाला होने से तू खाने लायक भी नहीं है | तूने अपनी कुलीनता दिखाई | इसलिए तू आगे से हट | जिससे में मालिक से कुछ कहूँ |"  सियार के हटने पर चीते ने शेर को प्रणाम करके कहा, "आप मेरी जान से अपनी भूख मिटाइये | मुझे स्वर्गवास दीजिये | और मेरी कीर्ति बढ़ाइए |" 

     यह सुनकर ऊंट सोचने लगा, ' इन सब ने स्वामी से मीठी मीठी बातें कही, पर स्वामी ने इनमे से एक को भी नहीं मारा | इसलिए मैं भी समयानुकूल बातचीत कह देता हु | जिससे मेरी बात का ये तीनो समर्थन करे | इस तरह निश्चय करके वह बोला, " अरे ! तुमने ठीक कहा पर तुम भी पंजे वाले हो, फिर कैसे तुम्हे स्वामी खाएंगे | अपनी जाती वालो का जो मन में भी अनिष्ट सोचता है उसे इस लोक में या परलोक में भी अनिष्ट ही मिलता है | 

    इसलिए तुम आगे से हटो, जिससे मैं स्वामी से कुछ कहु |' ऐसा कहके ऊंट आगे बढ़कर शेर को प्रणाम किया और कहा, "स्वामी ! यह सब आपके लिए खाने योग्य नहीं है | इसलिए मुझे मारकर आप अपनी शरीर की रक्षा कीजिये, जिससे मुझे स्वर्ग की प्राप्ति होगी |" वह यह कह ही रहा था की सियार और चीते ने उसका पेट फाड् दिया और उसका गला अपने धारधार दातो से चिर दिया | उससे वह मर गया |बाद में उन सब ने मिल बाटके उस ऊंट को खाया |

     इस कहानी हम यह सीखते है की, हमेशा अच्छे और सच्चे दोस्त ही चुनने चाहिए |

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