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ब्राह्मण और ठग | Brahman And Thief

Panchtantra kahani | प्रेरणादायक कहानी 

चोर और ब्राह्मण

Brahman and Thief

     किसी नगर में एक बड़ा विद्वान् ब्राह्मण था | मगर बचपन से चोरों की संगत में रहने से वह चोरिया करता था | उस नगर में दूसरे देश से आये हुए चार ब्राह्मणो को बहुत सा माल बेचते हुए देखकर वह सोचने लगा, "अरे ! किस उपाय से मैं इनका धन चुरा लू |" इस प्रकार विचार करके उनके सामने अनेक शास्त्रों का बखान करके तथा मीठी मीठी बातें कहकर उनके मन में विश्वास पैदा करके वह उनकी सेवा करने लगा | इस तरह जब वह उनकी सेवा कर रहा था | 

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Brahman and Thief

     कुछ दिनों में ब्राह्मणो ने अपना सब माल बेचकर कीमती जवाहरात ख़रीदे | उन ब्राह्मण के सामने ही उन रत्नो को अपनी जांघ में छिपाकर दूसरे व्यापारी ब्राह्मणो ने अपने देश जाने की तैयारी की | इस पर वह धूर्त ब्राह्मण उन ब्राह्मणो को देश जाने की तैयारी करते हुए देखकर घबराया | "अरे ! इस धन में से तो मुछे कुछ मिला नहीं, इसलिए इन लोगो के साथ जाऊ | रास्ते में किसी तरह इन्हे जहर देकर सब जवाहरात लूट लूंगा |" 

     इस तरह सोचकर उन लोगो के सामने वह रोते हुए कहने लगा, " मित्रो ! तुम मुझे अकेला छोड़कर जाने के लिए तैयार हुए हो | मेरा मन तो तुम्हारे स्नेहपाश से बंध गया है | और तुम्हारे विरह के नाम से ही मैं इतना व्याकुल हो गया हूँ , की मेरा धीरज नहीं बंधता | इसलिए तुमसब कृपा करके मुझे अपने साथ सहायक की तरह ले चलो |" उसकी यह बात सुनकर उन चार ब्राह्मणो का दिल भर आया | और उसे साथ लेकर पाने देश जाने के लिए निकल पड़े |

     रास्ते में वे पांचो जनपल्ली नाम के गांव से होकर निकले | इतने में कौए चिल्लाने लगे, "अरे भिल्लो ! दौड़ो दौड़ो ! लाखो के धनि जा रहे है | उन्हें मारकर धन ले लो |" कौओ की बात सुनकर भिल्लो ने जल्दी से वहाँ जाकर डंडे से उन पांचो ब्राह्मण की मरम्मत करके तथा उनके कपडे उतारकर उनकी तलाशी ली, पर कुछ धन नहीं मिला | इस पर भिल्लो ने कहा, "ब्राह्मणो ! पहले कभी भी कौओ की बात झूठी नहीं निकली है | इसलिए जो कुछ भी धन तुम्हारे पास हो हमें दे दो, नहीं तो सब को मारकर और चमड़ी चीरकर तुम्हारे सब अंगो की हम तलाशी लेंगे |

      उनकी यह बात सुनकर चोर ब्राह्मण ने मन में विचार किया, " ये ब्राह्मणो को मारकर उनके अंगो की तलाशी लेकर रत्न ले लेंगे और उसी तरह मुझे भी मार डालेंगे |  मेरा मरना तय है | तो इन चारो ब्राह्मणो के पास धन नहीं यह साबित करने के लिए, भिल्लो को मुझे पहले मारने की बिनती करता हूँ | मेरे शरीर में कुछ नहीं है , यह देखके उन चारो के प्राण तो बच जायेंगे |

     इस प्रकर निश्चय करके उसे कहा, "अरे भिल्लो ! यही बात है, तो पहले मुझे मारकर तलाशी लो |" बाद में डाकुओं ने ऐसा ही किया और उसे बिना धन का पाकर दूसरे चारो को भी छोड़ दिया |
     

     इस कथा से हमें यह सिख मिलती है, मुर्ख दोस्त से अच्छा बुद्धिमान शत्रु होता है | बन्दर राजा का हितेषी होकर भी उसने राजा को मार डाला | और चोर ब्राह्मण शत्रु होते हुए भी अपनी जान देकर चारो व्यापारी ब्राह्मणो की जान बचाई |


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