Inspirational Story With Moral
तेनालीराम की कहानियां
तेनालीराम जब युवा थे तभी उनके पिता गरलापती रामय्या की मृत्यु हुई। और उसके बाद तेनाली रामा अपनी माता के गाँव तेनाली, अपने मामा के पास माँ समेत चले गए। इस लिए उन्हे तेनाली रामलिंगा के नाम से बुलाया जाता है। महाराज कृष्णदेव राय का शासन वर्ष 1509 से 1529 तक विजयनगर की राजगद्दी पर था। तब तेनालीराम महाराज कृष्णदेवराय के दरबार में एक हास्य कवी और मंत्री सहायक की भूमिका में उपस्थित रहते थे।
Inspirational Story with Moral - १) सोने के आम
Story of Tenaliram in hindi |
जब से तेनालीराम महाराज कृष्णदेव राय के दरबारी बने थे, तब से एक बात उन्हें सता रही थी कि विजय नगर के ब्राह्मण बड़े ही लालची है। धर्म और कर्म के नाम पर गरीबों को उल्टी-सीधी पट्टी पढ़ा कर और नए-नए रीति रिवाज बनाकर गरीबों को लूटते थे।
एक दिन महाराज कृष्णदेव राय ने राज्यसभा में बताया कि आज उनकी मां की बरसी है। महाराज कृष्णदेव राय ने राजपुरोहित से पूछा, कि उनकी मां को मरते समय आम खाने की इच्छा थी मगर यह इच्छा उनकी पूर्ण हो न सकी। क्या अब ऐसा कुछ हो सकता है कि मेरी मां की आत्मा को शांति मिले?
यह मामला राजपुरोहित से संबंधित था। इसलिए किसी के बोलने से पहले ही राजपुरोहित बोले, "महाराज! इसका उपाय मैं बताता हूं।"
महाराज ने कहा, "हाँ कहिये राजपुरोहित जी। मैं अपनी मां की आत्मा की शांति के लिए जो उपाय आप बताएंगे वह जरूर करूंगा। इस विषय में आपसे भला और कौन अच्छा सुझाव दे सकता है?"
"महाराज मेरा सुझाव तो यही है कि एक सौ आठ ब्राह्मणों को सोने का आम दक्षिणा स्वरूप दिया जाए। तो राजमाता की आत्मा को शांति जरूर प्राप्त हो सकती है।"
महाराज इस बात से खुश हो उठे और तुरंत ही एक सौ आठ सोने के आम ब्राह्मणों को दान करने की घोषणा कर दी। राजपुरोहित का यह लालचीपन देखकर तेनालीराम के तन बदन में आग लग गई। तेनालीराम मन ही मन सोचने लगा, "अब तो पानी सर से ऊपर चला गया। इस लालची पन का कुछ उपाय तो करना चाहिए। इन ब्राह्मणों को सबक सिखाना ही चाहिए।"
जिन 108 ब्राह्मणों को सोने का आम दान में मिला था, उनमे से कहीं ब्राह्मण राजपुरोहित के सगे संबंधी थे। फिलहाल तेनालीराम को कोई युक्ति सूझ नहीं रही थी। इसलिए उन्होंने सोचा कि वक्त आने पर इन ब्राह्मणों को में जरूर सबक सिखाऊंगा।
कुछ ही महीने बीत जाने के बाद उन्हें एक अवसर प्राप्त हो गया। कुछ ही दिनों उपरांत तेनालीराम के माँ की बरसी थी। तेनालीराम ने बरसी के दिन होम हवन करके ब्राह्मणों को कुछ अपने हिसाब से दान देकर मां की बरसी की। और उसके उपरांत वही 108 ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलाया। भोजन के पश्चात उन सभी ब्राह्मणों को एक अलग कक्ष में बैठाया गया। उस कक्ष में आकर तेनालीराम ने नौकरों को इशारा किया। इशारा पाते ही नौकर धधकते हुई लोहे के सलाखें लेकर उपस्थित हो गए।
एक दिन महाराज कृष्णदेव राय ने राज्यसभा में बताया कि आज उनकी मां की बरसी है। महाराज कृष्णदेव राय ने राजपुरोहित से पूछा, कि उनकी मां को मरते समय आम खाने की इच्छा थी मगर यह इच्छा उनकी पूर्ण हो न सकी। क्या अब ऐसा कुछ हो सकता है कि मेरी मां की आत्मा को शांति मिले?
यह मामला राजपुरोहित से संबंधित था। इसलिए किसी के बोलने से पहले ही राजपुरोहित बोले, "महाराज! इसका उपाय मैं बताता हूं।"
महाराज ने कहा, "हाँ कहिये राजपुरोहित जी। मैं अपनी मां की आत्मा की शांति के लिए जो उपाय आप बताएंगे वह जरूर करूंगा। इस विषय में आपसे भला और कौन अच्छा सुझाव दे सकता है?"
"महाराज मेरा सुझाव तो यही है कि एक सौ आठ ब्राह्मणों को सोने का आम दक्षिणा स्वरूप दिया जाए। तो राजमाता की आत्मा को शांति जरूर प्राप्त हो सकती है।"
महाराज इस बात से खुश हो उठे और तुरंत ही एक सौ आठ सोने के आम ब्राह्मणों को दान करने की घोषणा कर दी। राजपुरोहित का यह लालचीपन देखकर तेनालीराम के तन बदन में आग लग गई। तेनालीराम मन ही मन सोचने लगा, "अब तो पानी सर से ऊपर चला गया। इस लालची पन का कुछ उपाय तो करना चाहिए। इन ब्राह्मणों को सबक सिखाना ही चाहिए।"
जिन 108 ब्राह्मणों को सोने का आम दान में मिला था, उनमे से कहीं ब्राह्मण राजपुरोहित के सगे संबंधी थे। फिलहाल तेनालीराम को कोई युक्ति सूझ नहीं रही थी। इसलिए उन्होंने सोचा कि वक्त आने पर इन ब्राह्मणों को में जरूर सबक सिखाऊंगा।
कुछ ही महीने बीत जाने के बाद उन्हें एक अवसर प्राप्त हो गया। कुछ ही दिनों उपरांत तेनालीराम के माँ की बरसी थी। तेनालीराम ने बरसी के दिन होम हवन करके ब्राह्मणों को कुछ अपने हिसाब से दान देकर मां की बरसी की। और उसके उपरांत वही 108 ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलाया। भोजन के पश्चात उन सभी ब्राह्मणों को एक अलग कक्ष में बैठाया गया। उस कक्ष में आकर तेनालीराम ने नौकरों को इशारा किया। इशारा पाते ही नौकर धधकते हुई लोहे के सलाखें लेकर उपस्थित हो गए।
तेनालीराम ने नौकरों से कहा, इन सभी को गर्म सलाखों से उनके घुटनों पर दाग दिया जाए। यह बात सुनकर सभी ब्राह्मण भय से चीख-पुकार करने लगे। वह ब्राह्मण डर के मारे भागने लगे तो तेनालीराम के नौकरों ने उन्हें पकड़ लिया और फिर एक-एक करके सभी के घुटनों को गर्म सलाखों से दाग दिया।
तेनालीराम की यह बात सुनकर महाराज सब कुछ समझ गए। जबकि राजपुरोहित और सभी ब्राह्मणों का सर शर्म से झुक गए। बाकी दरबार इन सब पर हंस रहा था।
Inspirational story with Moral
२) धूर्त जासूस
Tenali raman stories in hindi |
यह बात उन दिनों की है जब शत्रु के उपद्रव से परेशान होकर राजा कृष्णदेव राय ने रायचूर, विजापुर और गुलबर्गा इन पर आक्रमण करने की तैयारी कर ली। उन्होंने अपने राज्यपाल से कहा कि सेना के लिए आदमी और धन इकट्ठा कर लीजिए। ताकि शत्रु का सर पूरी तरह से कुचल दिया जाए।
एक पड़ोसी राजा को तो वह पहले ही हरा चुके थे। अब उत्तर के शत्रुओं की बारी थी। उनकी सेना ,उनका पराक्रम और उनकी इतनी शक्ति देखकर मिर्जापुर का सुल्तान चिंता में पड़ गया। अगर कृष्णदेवराज ने हम पर हमला किया तो हमारे सल्तनत बचाना मुश्किल हो जाएगा। उसने एक मुसलमान जासूस को ब्राह्मण के वेष में विजयनगर भेजा। ताकि वहां राजा के पास जल्दी जाकर उसका विश्वास प्राप्त सके। और सही मौका पाते ही वह राजा की हत्या कर डाले। सुल्तान ने सोचा कि राजा कृष्णदेव राय की हत्या होने पर हम ही विजयनगर पर आक्रमण कर देंगे। राजा के मृत्यु के बाद जनता में जो आपाधापी मच जाएगी, उसका हमें लाभ मिलेगा, इस प्रकार हम अपना राज्य भी बचा लेंगे और शत्रु का राज्य भी हड़प लेंगे।
जासूस बड़ा ही धूर्त और कपटी था। वह पहले ही एक हिंदू राजा की गुप्तचर संस्था में कार्य कर चुका था। इसलिए वह हिंदी, संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं में पारंगत था। और वह ब्राह्मणों के कर्मकांड भी जानता था। वह जासूस तमिल ब्राह्मण बनकर राजा के दरबार में जा पहुंचा। वहां पर शुद्ध संस्कृत बोलता, वेदों का पाठ करता, शास्त्रों, पुराणों और नाटकों के अंश सुनाया करता। शीघ्र ही ब्राह्मण ने दरबार में एक अच्छा स्थान बना दिया। और कुछ ही दिनों पश्चात उसे राजमहल में दिन हो या रात किसी भी समय में आने की इजाजत मिल गई। धीरे-धीरे वह महल के अंदरूनी कक्ष तक भी जाने लगा।
वह ऐसे मौके की तलाश में था कि, जब राजा अकेला हो और उस पर वार किया जाए। बस एक ही समस्या उसके लिए थी कि राजा जहां भी जाता, वहां कुछ ना कुछ लोग उसके साथ ही रहते थे। ऐसे मौके पर पकड़े जाने का बहुत ही खतरा था। और तेनालीराम हर समय राजा के साथ रहता था इसलिए जासूस तेनालीराम से बहुत ही चिढ़ता था।
तेनालीराम को भी वहां अच्छा नहीं लगता था। तेनालीराम को शक हो गया कि इस ब्राह्मण की नियत कुछ ठीक नहीं है? जिस क्षण से तेनालीराम को उस पर शक हुआ उसी क्षण से वह उसे बेनकाब करने की लगातार कोशिश कर रहा था। मगर वह जासूस बड़ा ही धूर्त किस्म का था।
एक दिन अचानक तेनालीराम ने राजा के सामने उस जासूस से कुछ प्रश्न पूछ लिए, जैसे कि तुम्हारा वेद और गोत्र कौन सा है? तुम किस गांव से हो? तुम्हारे मातृभाषा क्या है? तुमने यह सभी भाषाएं कहां सीखें? उस जासूस ने उसका बिल्कुल ठीक उत्तर दिया।
ब्राह्मण जासूस के जाने के बाद तेनालीराम से महाराज ने पूछा, "तुम इतने प्रश्न क्यों कर रहे हो?"
तेनालीराम ने कहा, ''महाराज! मुझे इस आदमी पर शक हो रहा है। इसकी नियत तो कुछ ठीक नहीं लग रही है। गलत आदमी पर कृपा राज्य और प्रजा को बहुत नुकसान पहुंचाती है?
महाराज ने कहा, "क्या कहते हो तेनालीराम? तुम इतना शक क्यों कर रहे हो?"
तेनालीराम ने कहा, "महाराज! आप जरा सोचिए, किसी भी आदमी के दिखावे और स्वाभाविकता में बहुत अंतर होता है। यह ब्राह्मण कुछ ज्यादा ही दिखावा कर रहा है। शुद्ध बोलने का प्रयत्न, पूजा पाठ में बहुत जानकारी होने का दिखावा, हर वक्त संस्कृत बोलने का प्रयत्न, हर वक्त राजा के प्रति चाटूकारी दिखाना।
महाराज बोले, "तुम्हारे बात में कुछ तो दम है। पर मैं यकीन तभी करूंगा जब मेरे सामने कुछ सबूत पेश कर सकोगे? वैसे भी अकेला मेरा क्या कर लेगा?
"महाराज! वह शत्रु का जासूस हो सकता है। या फिर शत्रु ने उसे आपके हत्या के लिए भेजा होगा? या फिर हमारे राज्य की सेना की खुफिया बातें जानने यहां आया होगा। महाराज आप तो राजा हो और एक राजा लाखों सिपाही के बराबर होता है। और आपके ना होने पर सेना में फूट पड़ जाएगी और प्रजा में हाहाकार मच जाएगा।"
अगर आज्ञा हो तो मैं सिद्ध कर सकूंगा की यह आदमी बनेल और झूठा है।
कृष्णदेवराय बोले, "ठीक है! फिर सिद्ध करो। लेकिन जब तक इसका अपराध सिद्ध न हो जाये तब तक इसपे कोई आँच नहीं आने चाहिए।
उस रात जब ब्राह्मण जासूस अपने कमरे में सो रहा था, तब तेनालीराम राजा के साथ वहां पहुंचा और एक ठंडे पानी का घड़ा उस पर उड़ेल दिया। सोता हुआ जासूस एकाएक चिल्लाता हुआ उठ बैठा और बोलने लगा "या अल्लाह! या अल्लाह!"
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तभी उसकी नजर तेनालीराम पर पड़ी और तेनालीराम ने मुझे पहचान लिया यह सोचकर क्रोध में आकर उसने अपनी तलवार निकाल दी। मगर इसके पहले कि वह तेनालीराम पर वार कर पाता राजा ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। इस प्रकार तेनालीराम ने अपनी समझदारी, सूझबूझ से राजा कृष्णदेव राय की जान बचा ली।
जब महाराज ने तेनालीराम से पूछा, "तुम्हें यह युक्ति कैसे सूझी?" तब तेनालीराम ने कहा, "महाराज! कोई भी व्यक्ति कितना भी धूर्त हो, मगर चोट लगने पर, आश्चर्य पर, या कोई भी अचानक अनहोनी होने पर वह अपनी मातृभाषा में ही बोलता है।"
तभी उसकी नजर तेनालीराम पर पड़ी और तेनालीराम ने मुझे पहचान लिया यह सोचकर क्रोध में आकर उसने अपनी तलवार निकाल दी। मगर इसके पहले कि वह तेनालीराम पर वार कर पाता राजा ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। इस प्रकार तेनालीराम ने अपनी समझदारी, सूझबूझ से राजा कृष्णदेव राय की जान बचा ली।
जब महाराज ने तेनालीराम से पूछा, "तुम्हें यह युक्ति कैसे सूझी?" तब तेनालीराम ने कहा, "महाराज! कोई भी व्यक्ति कितना भी धूर्त हो, मगर चोट लगने पर, आश्चर्य पर, या कोई भी अचानक अनहोनी होने पर वह अपनी मातृभाषा में ही बोलता है।"
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