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Bedtime Story in Hindi जैन साधु और नाई


Bedtimes Story in Hindi 
जैन साधु और नाई 

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जैन साधु और नाई 


नकलची नाई 

     दक्षिण जनपद में पाटलीपुत्र नाम का एक नगर था। वहाँ मणिभद्र नाम का एक सेठ रहता था। कुछ कारन वश अभाग्य से उसका धन धीरे धीरे समाप्त हो गया। धनहीन होनेसे उसका अपने सगे संबधीयो में अपमान होने लगा। इसलिए वह बहुत दुखी था। एक बार रात को सोते समय वह विचार करने लगा, "इस गरीबी का धिक्कार है। जब तक आप धनवान है, तब तक ही लोग आपके आगे पीछे घूमते है। इस गरीबी और अपमान जनक जिंदगी जीने से क्या फायदा? इससे अच्छा होगा के मैं अनशन करके अपने प्राण त्याग दू। "यह सोचकर वह सो गया।

     बाद में सपने में पद्मनिधि ने जैन साधु के रूप में उसे दर्शन देकर कहा, " अरे मणिभद्र ! वैराग्य मत अपना, तेरे पुरखो द्वारा उपार्जित में पद्मनिधि हु। कल इसी रूप में सवेरे तेरे घर आऊंगा। तभी मुझे तू डंडे से मेरे सर पर चोट करना। जिससे में सोने का हो जाऊंगा और कभी ख़त्म भी नहीं होऊँगा। तुम्हारी गरीबी हमेशा के लिए मिट जाएगी। और अपनी जिंदगी परोपकार करते हुए बिताना।
     
     सवेरे उठकर सपने के याद आते ही वह चिंता में डूब गया। "अरे, यह सपना सच्चा होगा की झूठा नहीं जानता। यह जरूर झूठा होगा, क्योंकि मेरे मन में बार बार धन की ही चिंता रहती है। इसलिए मुझे ऐसे सपने आते है।उसी वक्त उसकी पत्नी ने नाख़ून निकालने और पैरो को रंगने के लिए नाई को बुलाया था। नाइ उसकी पत्नी के नाख़ून निकल रहा था, तभी उसी समय सपने में जैसे साधु दिखाई दिया था, बिल्कुल वैसा ही एक जैन साधु वहां आया।  सेठ ने उसे देखते ही ख़ुशी ख़ुशी पास में पड़ा हुआ डंडा उसके सर पे मारा। वह उसी समय सोने का होकर जमीं पर गिर गया। मणिभद्र ने उसे छिपाकार घर में रख दिया और और नाई इस बात को कही फैलाये नहीं इसलिए उसे धन और महंगे वस्त्र देकर खुश कर दिया। और नाई से कहा, "मेरा दिया हुआ यह धन और वस्त्र तू ले।  और किसी से यह बात मत कहना।

     नाई भी अपने घर जाकर सोचने लगा, अवश्य ही सब नंगे जैन साधु के सर पर लाठी मरने से वह सोने के हो जाते है। इसलिए मैं सवेरे बहुत से नंगे जैन साधु को बुलाकर डंडे से मारूंगा। जिससे मुझे बहुत सा सोना मिल जायेगा। इस प्रकार सोचते हुए बड़े ही कष्ट से उसकी रात कटी।

   Bedtime Story in Hindi
 
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नकलची नाई 

     बाद में सवेरे उठकर वह जैन साधु के पास जाकर, जमीं पर घुटने टेककर कहा, "आपको मेरा प्रणाम है। भगवन ! आज आप सब मुनियो के साथ मेरे घर भोजन कीजिये।" जैन साधु ने कहा, अरे श्रावक ! धर्म जानते हुए भी तू ऐसा क्यों कहता है ? क्या हम ब्राह्मण जैसे है, की हमें न्योता देता है ? काल योग्य परिचर्या लेकर सदा घूमते हुए भक्त श्रावक को देखकर हम उसके घर जाते है।  और उसके घर केवल जान बचाने के लिए थोड़े प्रमाण में भोजन करते है। इसलिए चल दे, फिर ऐसी बात मत कहना। यह सुनकर नाई ने कहा, "मैं आपका धर्म जानता हु।  आप लोगो को बहुत से श्रावक बुलाते है।  मैंने पुस्तकों के वेष्टन के लिए कपडे और बहुत से कीमती कपडे तैयार कराये है।  तथा पुस्तकों को लिखने के लिए लेखकों धन देने हेतु बहुत सा धन इक्कठा किया है।  इस बारे में आपको जैसा ठीक लगे वैसा किजिए।

     इसके बाद नाई अपने घर चला गया। और घर पहुंचकर खेर का एक डंडा तैयार करके दरवाजे के पीछे छिपा दिया। दोपहर के समय वह फिर से साधु के मठ में चला गया। साधु के दोपहर के समय बाहर निकलते वक्त नाई ने साधु से प्रार्थना करके उन्हें अपने घर लाया। साधुओं को भी कपड़े और पैसे मिलने का लोभ हुआ। 
     
     वह साधु भी जान पहचान वाले भक्त श्रावक को छोड़कर उस नाई के पीछे चल दिए। नाई ने उन साधुओं को अपने घर लाया। उन साधुओ को नाई अच्छे पकवानों भोजन करवाया। वह साधु अकेले हैं यह देखकर नाइ ने उनके सर डंडों से फोड़ दिए। उसमें से कुछ साधु मर गए। बाकि और साधुओका सर फूट गया और वह चिल्लाने लगे।

     उनका रोना चिल्लाना सुनकर कोतवाल ने सिपाहियों से कहा, "अरे इस नगर में बड़ा शोरगुल क्यों मच रहा है ? इसलिए जल्दी जाओ रे! सब उसकी आज्ञा से उसके साथ जल्दी से नाई के घर पहुंचे। वहां उन्होंने लहू से सने शरीर वाले, इधर-उधर भागते हुए नंगे जैन साधुओं को देखकर पूछा। "अरे यह क्या बात है ? उन सब ने उस नाई की बात कही। इस पर सिपाही नाइ को बांधकर बचे कुचे जैन साधुओं के साथ उसे कचहरी (धर्माधिष्ठान) लाए। 

     न्यायाधीशों ने नाई से पूछा, "अरे! तूने यह कैसा कृत्य किया ? उसने कहा, मैं क्या कहुँ ? मणिभद्र सेठ के घर पर मैंने ऐसी घटना देखी थी।और उसने मणिभद्र के घर जो देखा था वो सब कहा। इस पर मणिभद्र को बुलाकर न्यायाधीशों ने कहा, "हे सेठ तुमने एक जैन साधु को क्यों मारा? उसने जैन साधु वाली सत्यघटना उन्हें बतला दी। इस पर उन्होंने कहा। इस दुष्ट नकलची नाई को फांसी पर चढ़ा दो।  इसने बहुत से साधुओको मार दिया है। ऐसा होने के बाद उन्होंने कहा, "जैसा नाई ने किया वैसा बिना ठीक देखे, जाने, सुने या परखने के बिना मनुष्य को कोई काम नहीं करना चाहिए। बिना सोचे समझे कोई काम नहीं करना चाहिए। सोच समझकर ही काम करना चाहिए।"

     दुसरो की तरक्की देखकर अक्सर लोग नकलची नाई की तरह अपने life में गलत Decision लेते है। वह यह नहीं देखते की उस इंसान ने उस मुकाम तक पहुँचने के लिए कितनी कठिनाई और कितनी मुश्किलों का सामना किया होगा। तब जाके वह इस मुकाम तक पहुंचा होगा। कोई भी काम करने से पहले या कोई भी Decision लेने से पहले बिना सोचे, समझे हमें कुछ नहीं करना चाहिए। आँखों देखि घटना का हर इंसान अपने के ज्ञान हिसाब से और अपने परिपेक्ष के हिसाब से उसका अनुमान लगता है। समज़दार इंसान ही उसका सही अनुमान और निष्कर्ष लगाता है।  


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