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Panchatantra Story in Hindi चंद्र राजा और बदला लेने वाला बंदर

Panchatantra Story in Hindi

चंद्र राजा और बदला लेने वाला बंदर


     किसी नगर में चंद्र नाम का राजा रहता था। उसके बच्चों को बंदरों के साथ खेलना पसंद था। इसलिए राजा ने अंदर पाल रखे थे। और हमेशा अच्छा खाना मिलने की वजह से बंदर पुष्ट हुए थे। बंदरों का सरदार बुद्धिमान होने से सबको नीति का पाठ पढ़ाता था।


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चंद्र राजा और बंदर

     उस राजमहल में मेंढ़ों का एक दल भी था। उनमें से एक मेंढ़ा भूखे भेड़िए की तरह रात दिन राजमहल के रसोई में कुछ ना कुछ खाता रहता था। वहां के रसोईदार मेंढे को काठ, मिट्टी, कांसे या जिस किसी के बने बर्तन पाते थे, उससे उसे मारते थे। उस बंदरों के सरदार ने यह देखकर सोचा। रसोईदारों और मेंढ़ों की लड़ाई की बला बंदरों के सिर आएगी। इस मेंढ़ों को अन्न का स्वाद लग गया है। और गुस्से वाले रसोई दार जो कुछ पाते हैं, उससे उसे मारते हैं। कोई चीज न मिलने पर अगर वह जलती हुई लकड़ी से मारेंगे तो उससे मारा यह मेंढा त्वचा पे बहोत सारी उन होने से जल उठेगा। जब अंग जलने लगेगा तो, जलते हुए वह घोड़े के अस्तबल की ओर भागेगा। घासफूस से भरा अस्तबल जल उठेगा। फिर घोड़े भी आग से जलने लगेंगे। शालिहोत्र नाम के वैद्य ने कहा ही हैं बन्दर की चर्बी से घोड़ों की जलन शांत हो सकती है। और ऐसा ही होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। 

     यह सोचकर अकेले में सब बंदरों को बुलाकर उसने कहा। जहाँ मेंढक के साथ रसोईदार की लड़ाई होती है, इसमें कोई शक नहीं है, कि वहाँ बंदरों का नाश होगा। जिस घर में नित्य अकारण कलह हो, उस घर को जीने अपनी जान प्यारी हो, छोड़ देना चाहिए। और भी कलह से महल खत्म हो जाते हैं। गाली गलोज से मित्रता, बुरे राजा से राष्ट्र और बुरे काम से राजाओं का यश। सब के खत्म होने के पहले ही हमें यह महल छोड़कर वन में चल देना चाहिए। 
     
     उसकी अविश्वसनीय बात सुनकर अभिमानी बंदरों ने हंसकर कहा, "अरे बुढ़ापे से आपकी अक्ल मारी गई है। जिससे आप ऐसा कहते हैं। कहाँ भी है, विशेषकर बच्चों और बूढ़ों का मुंह बिना दांत का होता है। नित्य लाल बहती है और बुद्धि उभरती नहीं। हम सब राजपूतों के हाथों से दिए गए अमृत के समान, स्वर्ग के समान तरह-तरह के खानों को छोड़ कर जंगल में कसैले, कड़वे, तीखे, नमकीन और रूखे फलों को नहीं खाएंगे।" इस पर आंखें भर कर उसने कहा, "अरे मूर्खो तुम सब इस सुख का नतीजा नहीं जानते। परी के रसास्वादन की तरह यह सुख तुम्हारे लिए जहर हो जाएगा। मैं स्वयं अपने कुल का नाश नहीं देख सकता। इसलिए मैं अभी जंगल में चला जाता हूं।"

     यह कहकर सबको छोड़कर बंदरों का वह सरदार जंगल में चला गया। उसके जाने के दूसरे ही दिन वह मेंढा रसोई में घुसा। रसोईदार को जब कुछ नहीं मिला, तो उसने आधी जली लकड़ी से उसे मारा जिससे उसके शरीर में आग लग गई और वह मिमियाता हुआ पास के ही घोड़ों के अस्तबल में घुस गया।  जमीन पर  घास फूस पड़े रहने से और उस पर उसके लौटने से चारों और आग लग गई।  जिससे कितने ही घोड़ो की आंखें फूट गई और वह मर गए और कितनों ने अपने बंधन छुड़ा कर अधजले शरीर से इधर-उधर हिनहिनाते हुए लोगों की भीड़ में गड़बड़ी डाल दी। 

    इससे राजा ने दुखी होकर घोड़ों के वैद्य को बुलाकर पूछा। "बताइए इन घोड़ों की दाह शांत करने का कोई तरीका है। शास्त्रों को देखकर उन्होंने जवाब दिया। "इस बारे में भगवान शालिहोत्रा ने कहा है।__
     "जैसे सूर्योदय से अंधेरा नष्ट हो जाता है, उसी तरह बंदरों की चर्बी से आग की दाह से घोड़ों के उत्पन्न दोष नष्ट हो जाते हैं। दाह-दोष से मरने के पहले ही इनका इलाज करवाइए।" यह सुनकर राजा ने सब बंदरों को मरवाने की आज्ञा दे दी। बहुत कहने से क्या? वह बंदर लाठी, पत्थर तथा दूसरे हथियारों से मार डाले गए। बंदरो का वह सरदार पुत्र, पौत्र, भतीजे और भांजे इत्यादि का मारा जाना सुनकर बड़ा दुखी हुआ और खाना-पीना छोड़ कर  एक वन से दूसरे वन में घूमने लगा। उसने सोचा किस तरह में उस राजा की बुराई का बदला लूँ।


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Monkey Revenge

     एक दिन प्यास से व्याकुल वह बूढ़ा बंदर घूमता हुआ कमल से भरे एक तालाब पर पहुंचा। वहां जब उसने आंखें गड़ाकर देखा तो उसे पता लगा कि वनचरों के  पैरों के निशान उस तालाब में जाते तो है पर निकलते नहीं। इस पर उसने सोचा, "अवश्य ही यह दुष्ट जलचर का घर है। इसलिए कमल की नाल से मैं दूर से ही जल पीलूंगा।"  उसके ऐसा करने पर तालाब के बीच से गले में रत्न माला पहने हुए एक राक्षस निकल कर उससे बोला, "अरे!  जो तालाब में घुसता है, वह मेरा खाना हो जाता है। तुझसे बढ़कर कोई धूर्त नहीं। जो इस तरह पानी पिए। मैं तुझसे खुश हूं। अपनी मनचाही बात मांग।  

     बन्दर ने कहा, "तू कितना खा सकता है ?"  उस राक्षस ने कहा सो, हजार, लाख जितने भी  इस पानी में घुसे मैं उन्हें खा सकता हूं। बाहर तो सियार भी मुझे हरा सकता है।" बंदर ने पूछा, "किसी राजा के साथ मेरी बड़ी दुश्मनी है। अगर तू मुझे यह रत्नमाला दे, तो मैं सपरिवार राजा को बातों में भुलवाकर, लालच दिखाकर तालाब में घुसालूंगा। उसकी विश्वसनीय बात सुनकर उसने उसे रत्नमाला देकर कहा, "अरे मित्र जैसा ठीक हो वैसा कर।

     बन्दर को रत्नमाला गले में पहने  लोगों ने इधर-उधर घूमते हुए देखकर पूछा, "अरे!  बंदरों के सरदार तुम इतने दिनों तक कहां थे। तुम्हें यह रत्नमाला जो तेज सूरज को भी मात करती है, कहां मिली।" बंदर ने कहा, "किसी जंगल में कुबेर ने एक गुप्त तालाब  बनाया है। उसमें रविवार के दिन सूरज उगने पर जो नहाता है। कुबेर की कृपा से वह ऐसी रत्नमाला पहन कर बाहर निकलता है। 

     राजा ने यह सुनकर बंदर को बुलाकर पूछा। "अरे सरदार! क्या यह सच है कि रत्नमाला से भरा कोई तालाब है। बन्दर में कहां, "स्वामी!  मेरे गले में पड़ी माना ही इस बात का विश्वास दिलाती है। अगर तुम रत्नमाला चाहते हो तो मेरे साथ किसी को भेज, मैं उसे दिखला दूं। यह सुनकर राजा ने कहा, अगर यही बात है तो मैं खुद अपने साथियों के साथ चलूंगा जिससे बहुत सी मालाएं मिले। बंदर ने कहा, "ऐसा ही कर।

     इसके बाद राजा के साथ रत्नमाला ओ के लालच में उसकी पत्नी और नौकर चल पड़े। राजा ने डोली पर चढ़कर बन्दर को भी प्रेम से गोद में ले लिया। बन्दर मन ही मन कहने लगा, "हे तृष्णा देवी, तुझे नमस्कार है, धनवानों  को भी तू ख़राब काम में लगाती है और दुर्गम स्थानों में घूमती है।"  

     सवेरे उस तालाब के पास आकर बंदर ने राजा से कहा "देव! सूरज के आधा होने पर तालाब में बैठने वालों को सिद्धि मिलती है इसलिए सबको इकट्ठे होकर ही घुसना चाहिए। आप मेरे साथ घुसियेगा। जिससे पहले देखें स्थान पर पहुंचकर मैं आपको बहुत सी रत्नमानाए दिखला दूंगा।"

     सब लोगों के तालाब में घुसने पर राक्षस ने उन्हें खा डाला। उनके देर करने पर राजा ने कहा, "अरे बंदरो के सरदार! हमारे साथी इतनी देर क्यों लगा रहे हैं?"  यह सुनकर जल्दी से वह पेड़ पर चढ़कर राजा से बोला, "अरे बदमाश राजा! पानी में रहने वाले राक्षस ने तेरे साथियों को खा डाला। मैंने परिवार के नष्ट होने का बदला ले लिया। अब तू जा। मैंने तुम्हें राजा जानकर वहां नहीं घुसाया। तूने मेरा खानदान? उजाड़ डाला और मैंने तेरा।"  यह सुनकर क्रोध से राजा पैदल पाव आए रास्ते से लौट गया।  

     राजा के जाने के बाद राक्षस तालाब से बहार आकर खुशी-खुशी बंदर से बोला। "शत्रु मारा गया, मित्र बना दिया। रत्नामाला भी रह गई, अरे ! होशियार बंदर तूने अच्छा कमल के नाल से पानी पिया।"

इस कथा से हमें यह सीख मिलती है की?
"जो लालच से काम करता है और नतीजे के बारे में नहीं सोचता वह चंद्र राजा की तरह दुखी होता है और हंसी का पात्र होता है।


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