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Mahabharat karna true Secret of Kavach and Kundal कर्ण के कवच कुण्डल का असली रहस्य |

Mahabharat karna true Secret of Kavach and Kundal 

कर्ण का कवच कुण्डल और दानवीरता |

Mahabharat karna true Secret : आइये दोस्तों जानते है कर्ण (Mahabharat karna) के कवच कुंडल का असली रहस्य जो जानकर आप चौक जायेंगे। आपने देखा ही होगा बी. आर. चोपड़ा के महाभारत और अन्य संबधित सीरियल में कर्ण का कवच कंधे से लेकर कमर तक ही होता है |  और कुण्डल कान में दागिने की तरह ही दिखाया जाता है |  क्या सचमुच कर्ण का कवच किसी धातु का और कुण्डल किसी मोती, हिरे या फिर किसी रत्नसे बने थे ?

     दोस्तों अर्जुनने कर्ण के कंठपर अर्धचन्द्राकृति अंजलीक तीर मारकर उसको युद्धभूमिपर मार गिराया था | अगर कवच कंधेसे लेकर कमर तक ही था, और कर्ण युद्धमें कंठपर तीर लगनेसे ही मारा गया तो कृष्ण को इंद्र को याचक के रूप में भेजकर कवच कुण्डल दान में माँगनेकी जरुरत ही नहीं थी |

          और दूसरी बात दोस्तों कर्ण ने अपने कवच और कुण्डल दान में इंद्र को देने तक अपने हाथोंसे, पैरोंसे और शरीरपर घाव नहीं देखें थे, नहीं अपना कभी खून देखा था | अगर कवच कंधेसे कमरतकही था, तो कर्ण ने अपने पैरोंके, हातोंके घावोसे निकलते खून को कभी न कभी तो देखा ही होता | मगर अपने जीवनकाल में कर्ण ने अपनी खून की पहली बून्द कवच अपने शरीर से अलग करते वक्त ही देखी थी|

          फिर कैसे थे कर्ण के कवच और कुंडल ?  और दोस्तों आप सब वाचक भी सोच में पड़ गए होंगे की इस कवच और कुंडल का आखिर रहस्य क्या है ?

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आइये जानते है कर्ण कवच कुण्डल की रोचक बातें
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          कर्ण के कुण्डल और कवच जन्मसे ही थे कर्ण का कवच किसी धातु का नहीं था |  बल्कि उसकी त्वचा ही उसका कवच था | उसकी त्वचा ही ऐसी थी जिसपर कोई अस्त्र या शस्त्र घाव नहीं कर सकता था, नहीं खून की एक बून्द भी उसके शरीर से निकल सकती थी | और कर्ण  के कुंडल किसी मोती, हिरे या रत्नके नहीं थे | बल्कि मास का ही लटकता हुआ चमकीला हिस्सा था और कान से अंखंडरूपसे जुड़ा हुआ था |
       
     अगर उसकी त्वचापर कोई अस्त्र या शस्त्र घाव नहीं कर सकता हो सोचो दोस्तों कर्ण ने अपने शरीर से कवच कैसे अलग किया होगा ?
         
     जब इंद्र कर्ण से ब्राह्मण के रूप में कवच और कुण्डल दान में मांगने आये थे तभी कर्ण को यह पता थाकी ब्राह्मण के भेस में इंद्र ही है और सूर्यपुत्र कर्ण से इंद्रपुत्र अर्जुन की युद्ध में रक्षा हेतु इंद्र कवच और कुण्डल का दान मांगने आये है तभी कर्ण ने इंद्र को अपने मूल स्वरुप में दर्शन की इच्छा व्यक्त की दर्शन पश्चात कर्ण बोले आपको कवच और कुण्डल आपकी  इच्छानुसार दान देता हूँ | मगर कोई अस्त्र या शस्त्र इसे काट नहीं सकता तो आप ही बताइये में इस कवच को अपने शरीरसे कैसे अलग करू ?

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Mahabharat karna true Secret of Kavach and Kundal 

           तब इन्द्रदेवने कर्ण को बताया तुम्हारे होठोंपे कोई त्वचा नहीं है | तुम वहींसे शुरू करके अपनी त्वचा रूपी कवच को अपने शरीर से खींचकर निकालो | जब कर्ण ने अपने कवच और कुण्डल इंद्र को दान दिएतब कर्ण सिर से लेकर अपने पैरोंतक खून से सने हुए थे इंद्र ने अपने दिव्यशक्ति द्वारा कर्ण को उसका पहिला स्वरुप प्रदान कियामगर साधारण त्वचा के साथ |  दानवीर कर्ण के इस दानशूरता से प्रसन्न होकर इंद्र ने उसे "शक्ति" नामक अस्त्र दिया जो एक ही बार इस्तेमाल हो सकता  था | 


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        दोस्तों महाभारत की इस कहानी से हमें यह पता चलता है की, कर्ण भले ही अधर्म के साथ याने दुर्योधन के साथ था | मगर जब जब दानवीरता की बात निकलेगी तब तब कर्ण का नाम लिया जायेगा | 

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