कृष्णा का विद्या ग्रहण और गुरु को सबसे बड़ी गुरुदक्षिणा अर्पण|
Greatest gurudakshina offering to guru by Krishna
Krishn , Balram in Sandipani ashram |
तो दोस्तों कृष्ण के गुरु थे, वाराणसी के आचार्य सांदीपनी| आचार्य सांदीपनि के भारत भर में आश्रम थे| श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव के आज्ञानुसार श्रीकृष्ण, बलराम और उनके चचेरे बंधू उद्धव आचार्य सांदीपनी से शिक्षा ग्रहण करने हेतु उनके आश्रम जा पहुंचे| आचार्य सांदीपनि के इस आश्रम का नाम अंकपाद था| यह अंकपाद आश्रम भारत के दक्षिण में अवन्ति वन में था|
कृष्णा का विद्या ग्रहण
श्रीकृष्ण ने आचार्य सांदीपनी से १४ विद्या की शिक्षा ग्रहण की थी| क्या आप ये जानते है ये १४ विद्याये कौनसी थी? तो ये विद्याये थी....
१)
ऋग्वेद
२) यजुर्वेद ३) सामवेद ४) अर्थववेद ५) शिक्षा
६) छंद ७) व्याकरण ८) निरुक्त ९) ज्योतिष १०) कल्प ११) मीमांसा १२) तर्क १३) पुराण
१४) धर्म
इसी अंकपाद आश्रम में श्रीकृष्ण सुदामा
से पहिली बार मिले| सुदामा भी श्रीकृष्ण
की तरह आचार्य सांदीपनि के शिष्य थे| और यहींपर सुदामा
श्रीकृष्ण के परममित्र बने|
सभी शिक्षा ग्रहण
करने के पश्च्यात सभी शिष्योंने अपनी
गुरुदक्षिणा आचार्य सांदीपनी को अर्पण कर दी| सभी शिष्यों से आचार्य सांदीपनी को गुरुदक्षिणा के रूप
में वस्त्र, अलंकार, धनसंपत्ती, गोधन प्राप्त हुए थे| मगर श्रीकृष्ण आचार्य से बोले
"आचार्य आप जैसे गुरु को अर्पण करने योग्य गुरुदक्षिणा मेरे पास नहीं है| मगर शंखासुरने आपके पुत्र दत्त को जहाँ
कही भी कैद करके रखा है वहाँ से मुक्त करके आपके स्वाधीन करूँगा| यही मेरी गुरुदक्षिणा मान लीजिये"|
शंखासुर का वध | Lord krishna killed shankhasura
शंखासुरको ढूंढने के लिए श्रीकृष्ण ने
अपने गुप्तचर विभाग को काम पे लगा दिया| कुछ दिनों बाद
गुप्तचरोँसे पता लगा की शंखासुर पश्चिम सागर के टापू पर अपनी असुरसेना के साथ रहता है| शंखासुर टापू पर बड़ी सी गुफा में रहता था| श्रीकृष्ण और बलराम ने अपने सेना सहित
शंखासुर पे आक्रमण कर दिया| शंखासुरके गुफा में
अपने सशस्त्र सेना के साथ श्रीकृष्ण और बलराम घुस गए| मगर उस गुफा में शंखासुर और उसकी
असुरसेनासे लड़ते लड़ते दिन पर दिन बितने लगे| मगर युद्ध का
निर्णयही नहीं लग रहा था| पुरे दो हफ्ते बीत गए| जबतक शंखासुर अपनी गुफा से बाहर निकालता
नहीं, तबतक हम जीत नहीं
पाएँगे ये श्रीकृष्ण जान चुके थे| बिल में छुपे सर्प को जिस तरह बहार निकालते है, उसी तरह शंखासुर को बाहर निकालने की श्रीकृष्ण ने तरकीप लगायी| गुफा के मुँहपे लकड़ियों का बड़ा ढेर लगाके, उसे जला दिया| गुफा थोड़ी ही देर में धुएं से भर गयी| धुएं से सास घुटतेहि शंखासुर अपनी
असुरसेना के साथ बाहर निकल आया| असुरसेना बाहर निकलते
हि यादव सेना उनपे टूट पड़ी| और उन्हें मार गिराया| शंखासुर
को बलराम ने द्वंद का आव्हाहन दिया| बलरामजीने मल्लयुद्ध
में शंखासुरका अपने बाहुकंटक पेच से वध कर दिया |
कृष्णा का पांचजन्य शंख | Krishna's Panchjanya shankh
इसी शंखासुर के पास एक शंख था| वह इतना बेजोड़ शंख था की, श्रीकृष्ण ने उस शंख को अपने पास जीवनभर
रखा था| और हर एक युद्ध में
और महाभारत युद्ध में भी उस शंख का उपयोग किया| उसी शंख को पांचजन्य
शंख कहा जाता था|
उसी गुफा में कैद आचार्य सांदीपनि के
पुत्र दत्त को बन्धमुक्त करके, श्रीकृष्ण ने उसे
आचार्य सांदीपनी को स्वाधीन करके अपनी गुरुदक्षिणा पूर्ण की | एक गुरु का उनके पुत्र से मिलाप, इससे बड़ी गुरुदक्षिणा क्या हो सकती है |
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