Krishna story of Syamantak Ratna mani : दोस्तो में आपको सम्य़ंतक रत्न की भगवन
श्रीकृष्ण से जुडी कहानी बताऊंगा| सम्य़ंतक वो
रत्न है जो पारस पत्थर की तरह लोहे को सोने में बदल देता है| सम्य़ंतक रत्नकी बहोतही
रोचक कहानी है, जो शायद ही आपने सुनी होगी|
भगवन श्रीकृष्ण के द्वारका राजसभा में दस मंत्रीगण का मंत्रिमंडल था| उस राजसभामे सत्राजित नामके ज्येष्ठ यादव मंत्री थे| सत्राजित निष्ठावान सूर्यभक्त थे| अपने कठोर सूर्यभक्ती साधनासे सत्राजित ने सम्य़ंतक नामक बहुमोल
मणिरत्न प्राप्त किया था| उस रत्न का वास्तव जहाँ रहता है, वहाँ खुशियाली और स्वास्थ हमेशा वास करते थे|
विधिनुसार पूजा करके लोहे के टुकड़े को सम्य़ंतक रत्न के स्पर्श में रखा जाता था| और बादमे मंत्रघोष के उच्चारण करते ही वह लोहे का टुकड़ा सोने में परिवर्तित होता था|
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एक दिन सत्राजितका बंधू प्रसेन को शेर ने घने जंगल में मारा डाला| उसके शवके पास पड़ा सम्य़ंतक रत्न उस बन के राजा जांभवान को मिला| अपने बंधू और सम्य़ंतक रत्न दोनों को गवाने के बाद सत्राजित ने भगवन श्रीकृष्ण पे सम्य़ंतक रत्न के चौर्यकर्म और अपनी बंधुकि हत्या का आरोप भरी राजसभा में किया| श्रीकृष्ण ने उसी राजसभा में प्रतिज्ञा ली, की सम्य़ंतक रत्न जहाँ भी होगा में वहाँ से ढूंढकर मंत्री सत्राजितको सुपुर्द कर दूंगा|
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श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया| मगर रत्नको सत्राजित को ही लौटा दिया| रत्न के लिए सत्यभामा से विवाह किया ऐसा कोई न कहे, इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी महानता दिखाते हुए, हात आये रत्न को ठुकराया मगर सत्यभामा को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया|
विधिनुसार पूजा करके लोहे के टुकड़े को सम्य़ंतक रत्न के स्पर्श में रखा जाता था| और बादमे मंत्रघोष के उच्चारण करते ही वह लोहे का टुकड़ा सोने में परिवर्तित होता था|
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Why did Krishna want Syamantak Ratna? कृष्ण को सम्य़ंतक क्यों चाहिए था ?
भगवान श्रीकृष्ण ने सत्राजित को उस सम्य़ंतक रत्न को उन्हें सुपुर्द करने को कहाँ| द्वारका स्थापन करने के बाद मथुरा में पीछे रहे अपने यादव बंदु और रिश्तेदारो की सुरक्षा और खुशियाली के लिए भगवन श्रीकृष्ण को वह सम्य़ंतक चाहिए था| मगर सत्राजित ने साफ इंकार कर दिया था|Krishna story about accusing him for killing and theft. कृष्ण पर हत्या और चोरी का आरोप |
एक दिन सत्राजितका बंधू प्रसेन को शेर ने घने जंगल में मारा डाला| उसके शवके पास पड़ा सम्य़ंतक रत्न उस बन के राजा जांभवान को मिला| अपने बंधू और सम्य़ंतक रत्न दोनों को गवाने के बाद सत्राजित ने भगवन श्रीकृष्ण पे सम्य़ंतक रत्न के चौर्यकर्म और अपनी बंधुकि हत्या का आरोप भरी राजसभा में किया| श्रीकृष्ण ने उसी राजसभा में प्रतिज्ञा ली, की सम्य़ंतक रत्न जहाँ भी होगा में वहाँ से ढूंढकर मंत्री सत्राजितको सुपुर्द कर दूंगा|
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Krishna story of merriage to tribal girl. श्रीकृष्ण का आदिवासी कन्या से विवाह |
कुछ दिनों बाद गुप्तहेरो से श्रीकृष्ण को पता चला की, वह रत्न ऋषभान पर्वतराज जांभवानके पास है| श्रीकृष्णने अपनी सेनासहित ऋषभान पर्वतराज जांभवानपर आक्रमण किया और उसे बंदी बनाया| मगर वह अपने जान के कीमतपर भी छुपाया हुआ सम्य़ंतक रत्न लौटने को तैयार नहीं था| उसने श्रीकृष्ण को कहा अगर आप मेरी कन्या जांभवतीको पत्नी के रूप में स्वीकार करते है, तोही में आपको सम्य़ंतक रत्न दूंगा| श्रीकृष्णने उसकी शर्त मानकर एक आदिवासी कन्या को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया| उसके उपरांत भरी राजसभामे कृष्ण ने उस रत्न को मंत्री सत्राजित को सुपुर्द किया| उसके बाद सत्राजित अपने आप पर ही शर्मिंदा हुआ| और भगवान श्रीकृष्ण से माफ़ी माँगकर उस रत्न को श्रीकृष्णको देनेकी उसी राजसभा में घोषणा कर दी थी| और अपनी पुत्री सत्यभामाको श्रीकृष्ण को पत्नी के रूप में स्वीकार करने को कहा|Krishan Story of Merriage to Satyabhama. श्रीकृष्ण और सत्यभामा का विवाह |
श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया| मगर रत्नको सत्राजित को ही लौटा दिया| रत्न के लिए सत्यभामा से विवाह किया ऐसा कोई न कहे, इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी महानता दिखाते हुए, हात आये रत्न को ठुकराया मगर सत्यभामा को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया|
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